रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, "रेजांग ला की लड़ाई को दुनिया के 10 सबसे बड़े और सबसे चुनौतीपूर्ण सैन्य संघर्षों में से एक माना जाता है।"
नई दिल्ली: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को पूर्वी लद्दाख के रेजांग ला में एक पुनर्निर्मित युद्ध स्मारक का उद्घाटन किया, जहां 18,000 फीट की ऊंचाई पर एक महाकाव्य युद्ध स्थल था, जहां 59 साल लगभग 100 जाबाज भारतीय सैनिकों ने बड़ी बहादुरी से चीनी सेना को हताहत कर परास्त कर दिया था।
रेजांग ला की लड़ाई को मोटे तौर पर छह दशक पहले भारत-चीन युद्ध में भारतीय सेना के लिए सबसे बेहतरीन क्षण माना जाता है।
शहीद वीरों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, श्री राजनाथ सिंह ने स्मारक को भारतीय सेना द्वारा प्रदर्शित दृढ़ संकल्प और अदम्य साहस का एक उदाहरण बताया। उन्होंने कहा कि यह न केवल "इतिहास के पन्नों में अमर है, बल्कि हमारे जवानो का साहस आज भी हमारे दिलों में धड़कता है"।
रक्षा मंत्री ने कहा, "रेजांग ला की लड़ाई को दुनिया के 10 सबसे बड़े और सबसे चुनौतीपूर्ण सैन्य संघर्षों में से एक माना जाता है।"
"18,000 फीट की ऊंचाई पर लड़े गए रेजांग ला की ऐतिहासिक लड़ाई की आज भी कल्पना करना मुश्किल है। मेजर शैतान सिंह और उनके साथी सैनिकों ने 'आखिरी गोली और आखिरी सांस' तक लड़ाई लड़ी और बहादुरी व् बलिदान का एक नया अध्याय लिखा। ,"
सिंह ने ट्वीट किया, "मैं लद्दाख की दुर्गम पहाड़ियों के बीच स्थित रेजांग ला पहुंचकर 1962 के युद्ध में सर्वोच्च बलिदान देने वाले 114 भारतीय सैनिकों को सलाम करता हूं।"
रेजांग ला की लड़ाई 18 नवंबर, 1962 को सुबह लगभग 4 बजे शुरू हुई और रात करीब 10 बजे तक चली, जिसके दौरान मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में कुमाऊं रेजीमेंट की 13वीं बटालियन की 'सी' कंपनी न केवल अपनी जमीन पर खड़ी रही बल्कि चीनियों को भारी संख्या में ध्वस्त भी किया ।
मेजर सिंह को बाद में मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सैन्य पुरस्कार 'परमवीर चक्र' से सम्मानित किया गया। रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने ब्रिगेडियर (रिटायर्ड) आर. बी.जतर से भी मुलाकात की जो रेजांग ला की लड़ाई का हिस्सा थे।
श्री सिंह ने कहा, "मैं उनके प्रति सम्मान की भावना से अभिभूत हूं और मैं उनके साहस को सलाम करता हूं। भगवान उन्हें स्वस्थ और दीर्घायु रखें।" चीन के आक्रामक रुख और भारतीय सैनिकों को डराने-धमकाने के असफल प्रयास के बाद पिछले साल अगस्त में भारतीय सेना ने रेजांग ला क्षेत्र में कई पर्वत चोटियों पर कब्जा कर लिया था।
भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच पूर्वी लद्दाख सीमा गतिरोध पिछले साल 5 मई को पैंगोंग झील क्षेत्रों में एक हिंसक झड़प के बाद भड़क गया था और दोनों पक्षों ने धीरे-धीरे भारी हथियारों के साथ-साथ हजारों सैनिकों की तैनाती बढ़ा दी थी। पिछले साल 15 जून को गालवान घाटी में एक घातक झड़प के बाद तनाव बढ़ गया था।
सैन्य और कूटनीतिक वार्ता के परिणामस्वरूप, दोनों पक्षों ने फरवरी में पैंगोंग झील के उत्तर और दक्षिण तट पर और अगस्त में गोगरा क्षेत्र में अलगाव की प्रक्रिया पूरी की।
10 अक्टूबर को अंतिम दौर की सैन्य वार्ता गतिरोध के साथ समाप्त हुई जिसके बाद दोनों पक्षों ने गतिरोध के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराया। 13वें दौर की वार्ता के बाद एक कड़े बयान में भारतीय सेना ने कहा कि वार्ता में भारतीय सेना द्वारा दिए गए रचनात्मक सुझाव जिस पर चीनी पक्ष ने न तो कोई सहमति जताई है और न ही बीजिंग ने कोई आगे का प्रस्ताव रखा है
वर्तमान में प्रत्येक पक्ष के पास सेंसिटिव क्षेत्र में लाइन ऑफ़ एक्चुअल कण्ट्रोल (एलएसी) पर लगभग 50,000 से 60,000 सैनिक हैं।
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